Monday 30th of September 2024

सतलुज किनारे जलाया गया था कर्ण को, तभी से मांहूनाग देवता को माना जाता है कर्ण का अवतार

Reported by: पराक्रम चन्द  |  Edited by: Rahul Rana  |  July 20th 2024 04:42 PM  |  Updated: July 20th 2024 04:42 PM

सतलुज किनारे जलाया गया था कर्ण को, तभी से मांहूनाग देवता को माना जाता है कर्ण का अवतार

ब्यूरो:  छोटी काशी मंडी अपने पुरातन मंदिरों के लिए जानी जाती हैं। इन मंदिरों में जिला एक मशहूर एक  मंदिर है बखोरी स्थित मूल मांहूनाग मंदिर, करसोग के चुराग नामक स्थान से इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक यह मंदिर मूल माहूंनाग के नाम से प्रसिद्ध है। ये मन्दिर महाभारत के योद्धा दानवीर कर्ण का है। क्योंकि माहूंनाग को कर्ण का अवतार माना जाता है। 

ऐसी किंवदंती है कि जब महावीर कर्ण का अंतिम संस्कार सतलुज नदी के किनारे किया गया था तो उनके संस्कार के बाद राख में से एक नाग प्रकट हुए जो इस मंदिर वाले स्थान पर आ गए। तब से कर्ण की मांहूनाग देवता के रूप में पूजा की जाती है। मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और मनचाही मुरादे पाते हैं।

कहा जाता है कि माहूंनाग के मंदिर में महाभारत काल से अखंड धूना जल रहा है लोगों की आस्था ने आज भी कभी धुना को बुझने नहीं दिया है। मंदिर के पुजारी के अनुसार देवताओं के राक्षसों का नाश करने के बाद यहां मंदिर परिसर में एक पेड़ पर आसमानी बिजली गिरी थी। उसी समय से ये अखंड धूना जलता आ रहा है। 

ये धूनी कभी राख से नहीं भरता है। इस धुने की राख से रोगों का नाश करने वाला माना जाता है। इस राख को श्रद्धालु अपने साथ भी लेकर जाते हैं।  श्रावण मास के प्रथम संक्रांति को मूल मांहूनाग जी का जन्मदिन मनाया जाता है, आज भी राजा कर्ण को सुकेत रियासत का कुल देवता भी माना जाता है।

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