Saturday 23rd of November 2024

संघ-सरकारी कर्मचारी-सरोकार, बंदिश पर सरकार का वार, विपक्षी कर रहे तकरार

Reported by: Gyanendra Shukla  |  Edited by: Rahul Rana  |  July 22nd 2024 03:03 PM  |  Updated: July 22nd 2024 03:03 PM

संघ-सरकारी कर्मचारी-सरोकार, बंदिश पर सरकार का वार, विपक्षी कर रहे तकरार

ब्यूरो: आज से तकरीबन छह दशक पहले 30 नवंबर 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर पाबंदी लगा दी गई थी। बीती 9 जुलाई को मोदी 3.0 सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए 58 साल पुरानी इस बंदिश को हटा दिया है। हालांकि इतने बड़े फैसले को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई ये तथ्य तब सुर्खियों में छाया  जब कांग्रेसी नेताओं ने तीखी आलोचना के साथ सरकारी आदेश के स्क्रीनशॉट को सोशल मीडिया पर साझा किया। इसके बाद आरोप-प्रत्यारोप के सिलसिले तेज हो गए और इस मुद्दे को लेकर सियासी माहौल सरगर्म हो गया।

 प्रतिबंध हटाने के फैसले पर कांग्रेसी नेताओं ने सोशल मीडिया पर पोस्ट के जरिए की आलोचना

 कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने आदेश का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, “ 58 साल पहले केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगाया था। मोदी सरकार ने उस आदेश को वापस ले लिया है”। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट के जरिए लिखा कि 1966 में सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह सही भी था। नौ जुलाई 2024 को 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया, जो वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी लागू था। जयराम रमेश ने 30 नवंबर, 1966 के मूल आदेश का स्क्रीनशॉट भी साझा किया, जिसमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी की गतिविधियों से जुड़ने पर प्रतिबंध लगाया गया था। कांग्रेसी नेताओं ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि अब नौकरशाह निक्कर में भी आ सकते हैं, दरअसल ये संघ के पूर्व के गणवेश को लेकर की गई टिप्पणी है।  

बीएसपी मुखिया मायावती ने भी फैसले की की आलोचना

 सरकारी कर्मचारियों और संघ से जुड़ाव के बाबत आए कथित सरकारी आदेश को लेकर कांग्रेस मुखर है। उसे इस मुद्दे पर बीएसपी का भी साथ मिल गया है।  बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा- सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखाओं में जाने पर 58 वर्ष से जारी प्रतिबंध को हटाने का केन्द्र का निर्णय देशहित से परे, राजनीति से प्रेरित संघ तुष्टीकरण का निर्णय, ताकि सरकारी नीतियों व इनके अहंकारी रवैयों आदि को लेकर  लोकसभा चुनाव के बाद दोनों के बीच तीव्र हुई तल्खी दूर हो। उन्होंने लिखा- सरकारी कर्मचारियों को संविधान व कानून के दायरे में रहकर निष्पक्षता के साथ जनहित व जनकल्याण में कार्य करना जरूरी होता है जबकि कई बार प्रतिबन्धित रहे आरएसएस की गतिविधियाँ काफी राजनीतिक ही नहीं बल्कि पार्टी विशेष के लिए चुनावी भी रही हैं। ऐसे में यह निर्णय अनुचित, तुरन्त वापस हो।

कांग्रेसी हमले के बाद सक्रिय हुई बीजेपी आईटी सेल

 जब कांग्रेसी खेमे की ओर से केंद्रीय कर्मचारियों के संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगाए गई रोक को हटाने के बाबत सोशल मीडिया पर ताबड़तोड़ हमले किए गए तब जाकर बीजेपी आईटी सेल सक्रिय हुआ। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर कार्मिक मंत्रालय के आदेश का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए पोस्ट किया, “58 साल पहले, 1966 में जारी असंवैधानिक आदेश, जिसमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था, मोदी सरकार ने वापस ले लिया है”।

इस मुद्दे पर आरएसएस की ओर से भी आई  प्रतिक्रिया

 मोदी सरकार के सरकारी कर्मचारियों से संघ से जुड़ाव को लेकर आए फैसले के लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा, 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत 99 वर्षों से सतत राष्ट्र के पुनर्निर्माण एवं समाज की सेवा में संलग्न है. राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता-अखंडता एवं प्राकृतिक आपदा के समय में समाज को साथ लेकर संघ के योगदान के चलते समय-समय पर देश के विभिन्न प्रकार के नेतृत्व ने संघ की भूमिका की प्रशंसा भी की है. अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते तत्कालीन सरकार द्वारा शासकीय कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक संगठन की गतिविधियों में भाग लेने के लिए निराधार ही प्रतिबंधित किया गया था.शासन का वर्तमान निर्णय समुचित है और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुष्ट करने वाला है।'

प्रतिबंध लगाए जाने के पीछे की वजहें

 दक्षिणपंथी विचारक मानते हैं कि पूर्ववर्ती की कांग्रेस सरकारों को संघ की सक्रियता से एलर्जी थी, इसीलिए समय समय पर इसकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के बहाने ढूंढ़े जाते थे। 7 नवंबर, 1966 में भारतीय संसद में गोहत्या के खिलाफ दिल्ली में एक व्यापक विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसके लिए आरएसएस और जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने व्यापक जनसमर्थन जुटाया। इस विरोध प्रदर्शन को रोकने के दौरान गोलियां चलाई गईं, गोलीबारी में कई आंदोलनकारी मारे गए। इस आंदोलन का प्रभाव और न बढ़े इसी से आशंकित होकर सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर पाबंदी का ताना बाना तैयार किया गया। कर्मचारी  संघ से जुड़ाव की जानकारी उजागर होने पर कर्मचारियों को कड़ी कार्यवाही का सामना करना पड़ता था, सेवानिवृत्त के बाद होने वाले पेंशन व भत्तों पर भी प्रतिकूल असर पड़ता था इसी वजह से सरकारी कर्मचारी सीधे तौर से संघ की गतिविधियों का हिस्सा बनने से बचने लगे।  संघ चिंतक अशोक सिन्हा कहते हैं कि संघ की अवधारणा एकदम स्पष्ट रही है कि  वह सांस्कृतिक संगठन है लेकिन उस वक्त इंदिरा गांधी जनसंघ के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थीं उन्हें लगता था कि संघ में शामिल होने से कर्मचारियों में जनसंघ के प्रति प्रतिबद्ध हो सकते हैं। इसीलिए रोक लगाई गई। अशोक सिन्हा के मुताबिक इस प्रतिबंध के बावजूद संघ के कार्यों में और उसकी सक्रियता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, निर्बाध गति से स्वयंसेवक समाज व राष्ट्र उत्थान के मिशन मेंं प्राणपण से जुटे रहे। एक भ्रम व भ्रांति को  सहारा लेकर 58  वर्ष  पूर्व जारी हुए इस शासनादेश के विषबीज अब निष्प्रभावी कर दिए गए हैं, ये न्यायसंगत फैसला ही है।   

 कई राज्य सरकारें पहले ही ये प्रतिबंध हटा चुकी हैं, अब केंद्र ने कदम उठाया

 मध्यप्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्य सरकारें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस से जुड़े होने पर प्रतिबंध को पहले ही हटा चुकी हैं। लेकिन केंद्र सरकार के स्तर पर यह आदेश वैध बना हुआ था। इस मामले में एक वाद इंदौर की अदालत में चल रहा था, जिस पर अदालत ने केंद्र सरकार से सफाई मांगी थी। इसी पर कार्रवाई करते हुए केंद्र सरकार ने नौ जुलाई को एक शासनादेश के जरिए उक्त प्रतिबंधों को समाप्त करने की घोषणा कर दी। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर लगे 58 साल पुराने ‘‘प्रतिबंध’’ को हटाने वाले आदेश में कहा गया है कि , "....उपर्युक्त निर्देशों की समीक्षा की गई है और यह निर्णय लिया गया है कि 30 नवंबर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के संबंधित कार्यालय ज्ञापनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख हटा दिया जाए"

संघ पर तीन बार लगे प्रतिबंध पर जल्द हटे, गांधी-नेहरू ने की थी सराहना

 संघ का दावा है कि साल 1934 में महात्मा गांधी महाराष्ट्र के वर्धा में आयोजित संघ के एक शिविर में पहुंचे थे। विभाजन के बाद 16 सितंबर 1947 को दिल्ली में दंगों के बीच गांधीजी ने खुद स्वयंसेवकों से मिलने की इच्छा जताई, तब उन्होंने वर्धा के शिविर का भी जिक्र करेत हुए कहा  ‘वहां (वर्धा में) मैं स्वयंसेवकों का कड़ा अनुशासन, सादगी, छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यंत प्रभावित हुआ था। तब से संघ ने काफी विकास किया है। मैं इस बात से सहमत हूं कि अगर कोई संगठन सेवा और त्याग के उच्च मानदंडों से प्रेरित है तो उसकी ताकत बढ़ती है। कुछ साल पहले संघ के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के शिरकत करने को लेकर खासी बहस हुई थी तब संघ की ओर से कहा गया था कि पंडित नेहरू स्वयंसेवकों की प्रशंसा कर चुके हैं और इंदिरा गांधी संघ नेताओं के कार्यक्रम में शिरकत कर चुकी हैं। तीन बार प्रतिबंध लगाया तो गया लेकिन सटीक तथ्यों व सत्य के सामने टिक नहीं सका।

बहरहाल सरकारी कर्मचारियों और संघ से जुड़ाव को लेकर केंद्र सरकार के ताजा फैसले के बाद चर्चाओं का दौर तेज है, संसद से लेकर सड़क तक इस मद्दे को लेकर सियासी माहौल गरमाना तय है। फिलहाल नियमों के मुताबिक अब सरकारी कर्मचारी आरएसएस के आयोजनों व कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकेंगे उन्हें किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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