UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में देवरिया, नब्बे के दशक से कांग्रेस की पकड़ होती गई कमजोर
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में चर्चा करेंगे देवरिया संसदीय सीट की। देवरिया जिला प्रशासनिक तौर से गोरखपुर मंडल का एक भाग है ये जिला उत्तर में कुशीनगर, पूर्व में बिहार के गोपालगंज व सिवान से, दक्षिण में मऊ और बलिया तथा पश्चिम में गोरखपुर जिले से घिरा हुआ है। घाघरा, राप्ती और छोटी गंडक इस जिले की मुख्य नदियां हैं। ।
आजादी से एक वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया देवरिया जिला
गोरखपुर के पूर्व व दक्षिणी हिस्से को अलग करके 16 मार्च 1946 को देवरिया जिला अस्तित्व में आया था। साल 1994 में देवरिया जिले के उत्तर-पूर्व भाग को लेकर कुशीनगर जिला बनाया गया। देवरिया जिले की तहसीलें हैं--देवरिया सदर, भाटपार रानी, बरहज, सलेमपुर और रुद्रपुर। बीते साल ये जिला तब सुर्खियों में आया जब यहां 2 अक्टूबर, 2023 को फतेहपुर गांव में जमीनी विवाद के चलते प्रेमचंद यादव की हत्या हुई। जिसके प्रतिशोध में सत्य प्रकाश दुबे समेत उनके परिवार के 5 सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
प्राचीन काल से महत्वपूर्ण स्थल रहा देवरिया क्षेत्र
देवरिया कभी कोशल राज्य का हिस्सा हुआ करता था। माना जाता है कि देवरिया नाम , ‘देवारण्य’ या ‘देवपुरिया’ से उत्पन्न हुआ। ‘देवरिया’ का शाब्दिक अर्थ है, ऐसा स्थान, जहां कई मंदिर हैं। यहां बहने वाली गंडक पौराणिक नदी है जिसका पूर्व में नाम हिरण्यवती हुआ करता था। मान्यता है कि जिले के सोहगरा धाम में स्थित बाबा हंस नाथ मंदिर का निर्माण द्वापर युग में बाणासुर ने कराया था।
देवरिया की महान विभूतियां व आस्था केंद्र
यहां के देवरहा बाबा अति प्रतिष्ठित सिद्ध संत रहे हैं। जो पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग मे पारंगत थे। इनका जन्म जिले के नाथ नदौली ग्राम में हुआ था। सरयू नदी के किनारे एक मचान पर रहकर अपनी साधना में लीन रहा करते थे देवरहा बाबा। जिनसे आशीर्वाद पाने के लिए सियासी दिग्गजों में होड़ रहती थी। साल 1920 में देवरिया और पडरौना में महात्मा गांधी ने दौरा किया और जनसभा को संबोधित किया। यहां के विश्वनाथ राय ने 1932 इलाहाबाद में कानून की पढ़ाई के दौरान घंटाघर पर तिरंगा फहराया। इस दौरान इनके दो साथियों की अंग्रेजों की गोलियों से मौत हो गई पर विश्वनाथ ने निडरता के साथ आंदोलन जारी रखा। इस क्षेत्र में देवरही मंदिर, दुग्धेश्वर नाथ मंदिर, दीर्घेश्वर नाथ मंदिर , परशुराम धाम , देवरहा बाबा कुटी, श्री तिरुपति बालाजी मंदिर अति प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं।
चीनी का कटोरा कहलाने वाले क्षेत्र में चीनी मिलों का टोटा
औद्योगिक विकास के पैमाने पर ये क्षेत्र पिछड़ेपन का शिकार है। कभी अविभाज्य देवरिया-कुशीनगर चीनी का कटोरा कहे जाते थे तब यहां 14 चीनी मिलें हुआ करती थीं। जिनमें यूपी शुगर फेडरेशन की चीनी मिल भटनी थी, कुशीनगर अलग हुआ तो 9 चीनी मिलें उनके हिस्से आईं। जबकि देवरिया में पांच चीनी मिलें बचीं, प्रतापपुर,भटनी, बैतालपुर,देवरिया और गौरी बाजार। मौजूदा वक्त में सिर्फ प्रतापपुर चीनी मिल ही संचालित है बाकी मिलें खंडहर में तब्दील हो गई हैं।
निवेश से यहां विकास की उम्मीदें जगीं
इस जिले में फ़ानूस, पर्दे, झालर इत्यादि का काम बड़े पैमाने पर होता है। ये उत्पाद बिहार और दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं...इसके साथ ही रेडीमेड गारमेंट्स का काम भी बहुतायत मे होता है। इन्वेस्टर्स समिट में यहां 118 उद्यमियों द्वारा किए गए 930 करोड़ रुपये निवेश के प्रस्तावों को अमली जामा पहनाने की कवायद चल रही है। इन निवेशों में एमएसएमई, पशुपालन, सहकारिता, मत्स्य पालन, टेक्निकल एजुकेशन, टूरिज्म, मेडिकल एजुकेशन, उद्यान सेक्टर शामिल है।
चुनावी इतिहास के आईने में देवरिया
देवरिया संसदीय सीट से 1952 में कांग्रेस के विश्वनाथ राय पहले सांसद चुने गए। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रामजी वर्मा सांसद बने। इसके बाद 1962,1967 और 1971 में लगातार जीतकर कांग्रेस के विश्वनाथ राय ने यहां जीत का रिकार्ड कायम कर दिया। 1977 में जनता पार्टी के उग्रसेन सिंह चुनाव जीते। 1980 में कांग्रेस के रामनयन राय चुनाव जीते जबकि 1984 और 1989 में कांग्रेस के राजमंगल पांडेय को जीत हासिल हुई। ये केंद्रीय मंत्री भी बने।
नब्बे के दशक से कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती गई
साल 1991 में जनता दल के मोहन सिंह यहां से सांसद बने। 1996 में यहां से चुनाव जीतकर प्रकाशमणि त्रिपाठी ने बीजेपी का खाता खोला। 1998 में सपा से मोहन सिंह सांसद बने। 1999 में फिर बीजेपी के प्रकाश मणि त्रिपाठी जीते तो 2004 में सपा के मोहन सिंह ने जीतकर इस सीट पर वापसी की। साल 2009 में यहां पहली बार बीएसपी का खाता खोला गोरख प्रसाद जायसवाल ने।
बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का परचम फहराया
साल 2014 की मोदी लहर में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर कलराज मिश्र ने जीत दर्ज की। 4,96,500 वोट मिले पाकर उन्होंने बीएसपी के नियाज अहमद को 2,65,386 वोटो के मार्जिन से परास्त किया। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने रमापति राम त्रिपाठी को मैदान में उतारा। जिन्होंने 580,644 वोट पाकर बीएसपी के विनोद कुमार जयसवाल को 2,49,931 वोटों के मार्जिन से हराया। तब विनोद कुमार जायसवाल के खाते में 3,30,713 वोट आए थे। कांग्रेस के नियाज अहमद खान को 51 हजार वोट मिल सके थे।
वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण
देवरिया संसदीय सीट पर 18, 73,821 वोटर हैं। इस सीट पर सर्वाधिक ओबीसी वोटर हैं, जिनमें छह फीसदी सैंथवार हैं। 13.9 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. जबकि अनुसूचित जाति के 14.2 फीसदी वोटर हैं। अनुसूचित जनजाति के वोटर्स की संख्या 3.1 फीसदी हैं। सामान्य मतदाताओं की संख्या 19 फीसदी है जिनमें सर्वाधिक तादाद ब्राह्मण वोटरों की है, आठ फीसदी वैश्य हैं। इसके साथ ही राजपूत व कायस्थ वोटर भी प्रभावी तादाद में हैं। इस सीट पर ब्राह्मण, राजपूत और कुर्मी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने किया था क्लीन स्वीप
देवरिया संसदीय सीट के तहत कुशीनगर की तमकुहीराज और फाजिलनगर विधानसभा सीटें शामिल हैं तो देवरिया की पथरदेवा, रामपुर कारखाना और देवरिया सदर सीटें हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से सभी सीटों पर बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था। तमकुहीराज से बीजेपी के असिम कुमार, फाजिलनगर से सुरेन्द्र कुशवाहा, रामपुर कारखाना से सुरेन्द्र चौरसिया, पथरदेवा से सूर्य प्रताप शाही और देवरिया सदर सीट से बीजेपी के ही शलभ मणि त्रिपाठी विधायक हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर योद्धा संघर्षरत
मौजूदा चुनावी जंग के लिए बीजेपी ने सिटिंग सांसद रमापति राम त्रिपाठी का टिकट काटकर शशांक मणि त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. कांग्रेस से अखिलेश प्रताप सिंह और बीएसपी से संदेश यादव चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह साल 2012 में बांसगांव लोकसभा क्षेत्र की रुद्रपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे। वहीं, शशांक मणि त्रिपाठी लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) व दो बार सांसद रहे श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के बेटे हैं। इनके बाबा एसएन मणि त्रिपाठी आईएएस अधिकारी रहे हैं। चाचा श्रीबिलास मणि त्रिपाठी रिटायर्ड डीजीपी हैं। शशांक ने आईआईटी दिल्ली से बीटेक और आईएमडी लुसान स्विट्जरलैंड से एमबीए किया है। वहीं, खुखुंदू निवासी संदेश यादव के पिता आनंद यादव सलेमपुर से 1993 में विधायक थे। संदेश 2005 में राजनीति में कदम रखा। खुखुन्दू से ग्राम प्रधान चुने गए। इनकी पत्नी दो बार ग्राम प्रधान रहीं। संदेश को रामपुर कारखाना सीट से बीएसपी ने 2022 में प्रत्याशी घोषित किया था पर बाद में इनका टिकट काट दिया गया था। बहरहाल, इस ऐतिहासिक क्षेत्र में हो रहा चुनावी घमासान दिलचस्प मोड़ पर है। मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा में नजर आ रहा है।