Thursday 5th of December 2024

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में वाराणसी सीट, सियासी दिग्गज यहां से चुने गए सांसद

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 31st 2024 07:58 PM  |  Updated: June 01st 2024 10:23 AM

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में वाराणसी सीट, सियासी दिग्गज यहां से चुने गए सांसद

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे वाराणसी संसदीय सीट की। यूपी के पूर्वी छोर पर गंगा नदी के बायीं ओर के वक्राकार तट पर स्थित है ये शहर। यहां वाराणसी जिले का मुख्यालय और वाराणसी मंडल का मुख्यालय भी है। यह शहर मिर्जापुर, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली और भदोही से घिरा हुआ है। वाराणसी को ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’, ‘भगवान शिव की नगरी’, ‘दीपों का शहर’, ‘ज्ञान नगरी’ भी कहते हैं.।

इस पवित्र नगर की महत्ता प्राचीन काल से ही स्थापित है

हिंदू धर्म का ये अत्यंत पवित्र  तीर्थस्थल है, इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है, जहां जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।  जैन व बौद्ध धर्म के अनुयायियों की आस्था भी इस क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं।गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। प्राचीन काल से काशी मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दांत और शिल्प कला का प्रमुख औद्योगिक केंद्र रहा। गौतम बुद्ध के काल में वाराणसी  काशी राज्य की राजधानी हुआ करता था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने यहां का विस्तृत वर्णन किया है। वाराणसी नाम दो स्थानीय नदियों 'वरुणा' और 'असि' के संगम से बना हुआ है। यहां के दशाश्वमेध घाट के पास बने शीतला माता मंदिर का निर्माण अर्कवंशी क्षत्रियों ने करवाया था।

अति प्राचीन काशी का जिक्र हर धार्मिक ग्रंथ में हुआ

अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेंड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।” ऋग्वेद में इसे काशी कहा गया है। काशी शब्द सर्वप्रथम अथर्ववेद की पिप्पलादि शाखा से उपजा है। हिंदुओं की सप्तपुरियों में से एक काशी का वर्णन शतपथ ब्राह्मण, रामायण  व महाभारत में भी किया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार इस शहर की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने पांच हजार वर्ष पूर्व की थी। महाभारत काल में काशी नरेश पांडवों की तरफ से युद्ध लड़े थे। गंगा की बाढ़ से हस्तिनापुर के नष्ट होने के बाद पाण्डवों के वंशजों ने वत्स राज्य बनाकर कौशांबी में नई राजधानी बनाई। काशी पर वत्स का अधिकार हो गया। ब्रह्मदत्त राजकुल का भी यहां अधिकार हुआ। मगध और कौशल का भी यहां आधिपत्य रहा।

आधुनिक काल में काशी का सफर

आधुनिक काशी राज्य की स्थापना काशी नरेश मनसाराम सिंह ने सन् 1725 इस्वी में किया। इनके पुत्र राजा बलवंत ने रामनगर किले का निर्माण करवाया था। जिनके पुत्र राजा चेत सिंह ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया। कहा जाता है कि चेत सिंह से पराजित होने के बाद वारेन हेस्टिंग्स ने जान बचाने के लिए स्त्री का भेष रखकर पलायन किया। हालांकि बाद में अंग्रेजों ने चेत सिंह को हरा दिया। वे निर्वासित होकर ग्वालियर चले गए, शिवाला घाट के नजदीक चैत सिंह का किला आज भी है। ब्रिटिश शासन के अधीन 1910 में वाराणसी को नया भारतीय राज्य बनाया गया। रामनगर को इसका मुख्यालय बनाया गया। काशी नरेश अभी भी रामनगर किले में रहते हैं।

कला-साहित्य-संगीत-शिक्षा हर क्षेत्र में काशी का योगदान

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना अति प्रसिद्ध रहा है। इसी काशी में कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ रहे हैं। जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, तैलंग स्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस यहीं लिखा था। यहां नामी गिरामी चार बड़े विश्वविद्यालय हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय यानि बीएचयू, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। 

वाराणसी की पहचान इसके घाटों व मंदिरों से है

वाराणसी अपने घाटों के लिए मशहूर रहा है। यहां अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, सिंधिया घाट,मानमंदिर घाट, गोप्रेक्ष्वेश्वर घाट, गंगा घाट, ललिता घाट अति प्रसिद्ध हैं। यहां 88 घाट हैं। मराठा शासकों सिंधिया, होल्कर, भोंसले और पेशवा ने भी वाराणसी को संरक्षण दिया।  सारनाथ और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर धाम धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र है। काशी विश्वनाथ मंदिर को विस्तृत रूप देकर काशी विश्वनाथ धाम बनाया गया है। ये पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार था।

उद्योग धंधे और विकास का आयाम

भारतीय रेल इंजन निर्माण के लिए बनारस रेल इंजन कारखाना यहीं है। वाराणसी और कानपुर का प्रथम भारतीय व्यापारिक घराना निहालचंद किशोरीलाल 1857 में देश के चौथे ऑक्सीजन संयंत्र इंडियन एयर गैसेस की स्थापना के साथ ही आरम्भ हुआ था। लार्ड मैकाले के अनुसार, वाराणसी वह नगर था, जिसमें समृद्धि, धन-संपदा, जनसंख्या, गरिमा एवं पवित्रता एशिया में सर्वोच्च शिखर पर थी। यहां के व्यापारिक महत्व की उपमा में उसने कहा था: " बनारस की खड्डियों से महीनतम रेशम निकलता है, जो सेंट जेम्स और वर्सेल्स के मंडपों की शोभा बढ़ाता है"।

बनारसी साड़ी और हस्तशिल्प काशी की हैं अनूठी  पहचान

बनारसी रेशमी साड़ी अपनी भव्यता और गुणवत्ता के लिए दुनिया भर में मशहूर हैं। बारीक बुने हुए रेशम से बनी साड़ियों पर सोने और चांदी के ब्रोकैड या जरी का काम किया जाता है। प्राचीन काल से ये शहर हस्तशिल्प कला का प्रमुख केंद्र रहा है। ये काम यहां के ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट) के तहत शामिल है। यहां पीतल-तांबे के बर्तन, हाथीदांत का काम, ग्लास चूड़ियां, लकड़ी, पत्थर और मिट्टी के खिलौने और सोने के आभूषण सरीखे शिल्प अति प्रसिद्ध हैं।

निवेश के जरिए पूर्वांचल के आर्थिक उदय का है प्लान

वाराणसी में ग्लास मोती क्लस्टर, हाई-टेक सिल्क बुनाई और डिजाइनिंग क्लस्टर, सिल्क ब्रोकैड क्लस्टर, हैंडलूम क्लस्टर, स्टोन कार्विंग क्लस्टर, ईंटों का विनिर्माण, और वुड क्लस्टर मौजूद हैं। इन्वेस्टर्स समिट के दौरान यहां 15 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश आए हैं। पर्यटन विभाग में 7165.81 करोड़ का भारीभरकम निवेश हो रहा है। निवेश के 33 प्रोजेक्ट धरातल पर उतर चुके हैं। जल्द कई अन्य प्रोजेक्ट तैयार हो जाएंगे जिससे बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा जिसके जरिए पूर्वांचल में आर्थिक उदय का सपना देखा जा रहा है।

चुनावी इतिहास के आईने में वाराणसी सीट

साल 1950 से 52 तक जो प्रोविज़नल पार्लियामेंट बनी थी, उसके सदस्य रहे थे त्रिभुवन नारायण सिंह। तब चंदौली बनारस का ही हिस्सा था। इसे बनारस ईस्ट कहते थे। 1952 और 1957 दोनों चुनावों में त्रिभुवन नारायण सिंह ने जीत दर्ज की. इन्होंने 1957 में दिग्गज समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया को चुनाव हराया था। मुख्य बनारस सीट को बनारस सेंट्रल कहते थे जिससे 1952,1957, 1962 में जीत की हैट्रिक लगाई कांग्रेस के रघुनाथ सिंह ने। 1967 में इस सीट पर भाकपा (मार्क्सवादी) के सत्य नारायण सिंह जीते। 1971 में कांग्रेस के राजाराम शास्त्री सांसद बने।

सियासी दिग्गज यहां से सांसद चुने गए

साल 1977 में जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चंद्रशेखर ने जीत दर्ज की जो बाद में देश के प्रधानमंत्री भी बने।  1980 में कांग्रेस के पंडित कमलापति त्रिपाठी और 1984 में कांग्रेस के ही श्याम लाल यादव ने यहां कामयाबी हासिल की। 1989 में जनता दल से अनिल शास्त्री सांसद बने।

नब्बे के दशक से काशी बना बीजेपी का गढ़

साल 1991 में बीजेपी के श्रीशचंद्र दीक्षित चुनाव जीते। जो यूपी के डीजीपी भी रहे थे। इसके बाद फिर लगातार तीन बार बीजेपी ने ही जीत दर्ज की। 1996, 1998 और 1999 में  बीजेपी प्रत्याशी शंकर प्रसाद जायसवाल ने जीत की हैट्रिक लगाई।  2004 में कांग्रेस के डॉ. राजेश कुमार मिश्र सांसद बने। तो 2009 में बीजेपी के दिग्गज नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी यहां के सांसद  चुने गए, जिन्होंने माफिया सरगना मुख्तार अंसारी को कड़े मुकाबले में 17,211 वोटों से हराया था, कांग्रेस के अजय राय तीसरे पायदान पर रहे।

वाराणसी सीट का एमपी बना देश का पीएम

साल 2014 में इस सीट पर चुनाव लड़े नरेन्द्र मोदी। जिन्हें इस सीट पर 581,022 वोट मिले। मुकाबले में उतरे आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को 209,238 वोट मिले थे। मोदी ने यहां का पहला चुनाव 371,784 वोटों के मार्जिन से जीता। इस जीत के बाद वह देश के प्रधानमंत्री बने।

पिछले आम चुनाव में भी मोदी ने बनाया जीत का रिकॉर्ड

साल 2019 में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर मोदी ने इस सीट पर दूसरी बार जीत दर्ज की। उन्होंने 674,664 वोट पाकर सपा की शालिनी यादव को 479,505 वोटों से परास्त कर दिया। तब शालिनी यादव को 195,159 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के अजय राय के खाते में 152,548 वोट आए थे।

वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना

इस संसदीय सीट पर कुल 19, 62,948 वोटर हैं। जिनमें बीस फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। इस  क्षेत्र में सर्वाधिक आबादी ओबीसी वोटरों की है। जिनमें निषाद, कश्यप, चौहान, चौरसिया और राजभर बड़ी तादाद में हैं। दो लाख कुर्मी वोटर हैं। एक लाख यादव,  दो लाख वैश्य वोटर हैं। इसके साथ ही यहां ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और कायस्थ बिरादरी भी प्रभावी तादाद में हैं। हालांकि इस सीट पर पीएम मोदी फैक्टर के आगे जातीय समीकरण बेअसर ही साबित हुए हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वर्चस्व हुआ कायम

वाराणसी संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से चार सीटें बीजेपी और एक सीट उसके सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) को मिली थी। रोहनिया से अपना दल (सोनेलाल) से सुनील पटेल विधायक हैं। जबकि वाराणसी उत्तरी से रविन्द्र जायसवाल, वाराणसी दक्षिण से नीलकंठ तिवारी, वाराणसी कैंट से सौरभ श्रीवास्तव और सेवापुरी से नील रतन सिंह  पटेल विधायक हैं।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर दिलचस्प मुकाबला

मौजूदा चुनावी जंग में एकबारगी फिर से पीएम नरेंद्र मोदी बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। जिनसे मुकाबले के लिए सपा-कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस के अजय राय और बीएसपी के अतहर जमाल लारी हैं। मायावती ने पहले यहां से पूर्व पार्षद सैय्यद नेयाज अली के नाम का ऐलान किया फिर इनका टिकट काटकर लारी को उतारा गया। लारी चार दशकों से अधिक वक्त से सियासत में सक्रिय हैं। जनता दल, सपा, अपना दल और कौमी एकता दल में रह चुके हैं। 1984 में जनता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े पर हार गए। साल 2004 में अपना दल से चुनाव लड़े पर 93228 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। बात कांग्रेस के अजय राय की करें। तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लेकर संघ तक जुड़े रहे और नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन में शामिल रहे अजय राय बीजेपी में रहते हुए तीन बार विधायक चुने गए। साल 2009 में सपा में शामिल हो गए। फिर 2012 में कांग्रेस का हिस्सा बन गए। इन दिनों कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। लगातार तीन बार वाराणसी सीट से चुनाव लड़े और हारे।

इस सीट पर पीएम मोदी के खिलाफ उतरने वाले प्रत्याशियों में आई कमी

साल 2014 में 43 उम्मीदवार पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने को आए थे। तो साल 2019 में 27 उम्मीदवारों ने मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा। इस बार ये संख्या घटकर सात पर पहुंच गई है। मुस्लिम प्रत्याशियों में भी भारी कमी आई है। 2014 और 2019 के चुनाव में चार-चार मुस्लिम प्रत्याशी खड़े हुए थे। इस बार सिर्फ बीएसपी से अतहर जमाल लारी चुनावी मैदान मे हैं।

पीएम के संसदीय क्षेत्र में बीजेपी ने झोंकी ताकत

बीते 16 दिनों में वाराणसी में चुनाव प्रचार के लिए चार मुख्यमंत्री, तीन डिप्टी सीएम, पार्टी संगठनों के 16 राष्ट्रीय अध्यक्ष, 14 केंद्रीय मंत्री और योगी सरकार के 11 मंत्री शामिल हुए। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, एमपी सीएम मोहन यादव ने पूर्वांचल की लगभग सभी सीटों पर प्रचार किया। महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे, मेघालय के सीएम कोनराड संगमा सीएम के नामांकन में शामिल रहे। यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, केशव प्रसाद मौर्य व महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी जमकर प्रचार किया।

इंडी गठबंधन ने जमकर किया चुनाव प्रचार

विपक्षी गठबंधन से राहुल-अखिलेश, डिंपल और प्रियंका ने किया प्रचार

सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस के राहुल गांधी ने जनसभाओं को संबोधित किया, रोड शो किए। सपा सांसद डिंपल यादव व प्रियंका गांधी ने भी कई सभाएं व रोड शो किए। पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, पीएल पुनिया, प्रमोद तिवारी, आराधना मिश्रा मोना, छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल, बिहार के नेता पप्पू यादव व उज्जवल रमण सिंह, पूर्व मंत्री डॉ सीपी राय ने प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी संभाली। वहीं, पीडीएम गठबंधन की ओर से पूर्वांचल में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी व अपना दल कमेरावादी की शीर्ष नेता पल्लवी पटेल ने पीडीएम प्रत्याशी गगन प्रकाश यादव के पक्ष में प्रचार प्रसार किया।

चुनावी मुकाबले में जीत के मार्जिन को लेकर हो रही चर्चा

वाराणसी में काशी कॉरिडोर के लोकार्पण के बाद ये पहला आम चुनाव हैं वहीं कुछ महीनों पहले ही अयोध्या में राम मंदिर का भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह हुआ था। जाहिर इन फैक्टर्स का भी चुनाव में असर दिखा है। काशी में आयोजित नारी वंदन कार्यक्रम के जरिए भी पीएम ने चुनावी अभियान का आगाज किया था। फिलहाल इस सीट पर विकास के रथ पर सवार—पीएम मोदी खुद को साबित कर रहे हैं जीत का दावेदार। अब इस दावे और विपक्षी चुनौती पर सारे देश की निगाहें टिकी हुई हैं।

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