ब्यूरो: दरकती सियासी जमीन, खिसकता वोटबैंक, लुढ़कता वोटशेयर, घटती विधायी सीटें, चुनाव दर चुनाव हार...ये सारे लफ्ज बहुजन समाज पार्टी के मौजूदा हालातों के लिए सटीक बैठते हैं। हालिया हुए लोकसभा चुनाव में अपना खाता न खोल पाने वाली बीएसपी अब कई सियासी प्रयोग करने की डगर पर है। जिसके तहत पार्टी जहां डेढ़ दशक के बाद यूपी में उपचुनाव में उतरने जा रही है वहीं, हरियाणा के चुनाव के जरिए मायावती अपने उत्तराधिकारी आकाश आनंद की नई सियासी जमीन तैयार कराने में जुट चुकी हैं। बीएसपी मुखिया बीजेपी के साथ ही कांग्रेस पर भी निशाना साधकर अपने वोट बैंक को सहेजने की रणनीति पर अमल कर रही है। हालांकि पार्टी की भविष्य की राह अभी भी दुश्वारियों भरी हैं।
बीएसपी की ओर से उच्चस्तरीय बैठकों का सिलसिला हुआ तेज
रविवार को लखनऊ में मायावती के नेतृत्व में बीएसपी पदाधिकारियों की अहम बैठक आयोजित हुई। जिसमें सभी जोनल कोऑर्डिनेटर, सभी मंडल कोऑर्डिनेटर और सभी जिला अध्यक्षों ने हिस्सा लिया। इस दौरान सभी को पूर्व की बैठकों में दी गई जिम्मेदारियों के बाबत फीडबैक लिया गया। पार्टी की जमीनी स्तर पर सक्रियता की पड़ताल की गई। साथ ही विधानसभा उपचुनाव के बाबत जरूरी इनपुट भी लिए गए। पार्टीजनों को संकेत दे दिए गए कि पूर्ण मनोयोग से बीएसपी की मुहिम को आगे बढ़ाएं इस संबंध में कोई भी कोताही बर्दाश्त नहीं होगी।
संगठन की निचले स्तर तक ओवरहालिंग है जारी
आम चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद ही बीएसपी सुप्रीमो के निर्देश पर कई पार्टी पदाधिकारियों को पदों से हटाकर नए चेहरे तैनात कर दिए गए थे। पार्टी में अब निष्क्रिय कार्यकर्ताओं की जगह सक्रिय व समर्पित कार्यकर्ताओं को मौका देने की मुहिम छेड़ी गई है। बीएसपी में बूथ स्तर तक नए सिरे से संगठन की व्यूह रचना की भी समीक्षा जारी है। संगठन को नए सिरे से गठित किया जा रहा है जिससे बीएसपी हार के दंश से उबरकर आगामी चुनावी चुनौतियों का मजबूती से सामना कर सके।
अरसे बाद बीएसपी उपचुनाव के अखाड़े में दांव आजमाने जा रही है
गौरतलब है कि बीएसपी ने साल 2010 में आखिरी उपचुनाव लड़ा था। तब सिद्धार्थनगर की डुमरियागंज सीट पर हुए उपचुनाव बीएसपी की खातून तौफीक ने बीजेपी के ओमप्रकाश तिवारी को 15,842 वोटों के मार्जिन से हरा दिया था। इसके बाद से बीएसपी ने उपचुनाव लड़ने से किनारा कस लिया था। पर अब चौदह वर्षों बाद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही मायावती की पार्टी विधानसभा की दस सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए कमर कस चुकी है। सीटवार जांचा जा रहा है कि बीजेपी और समाजवादी पार्टी किन चेहरों को उतार सकती है। उसी के लिहाज से हर सीट पर तीन से चार प्रत्याशियों के नामों पर मंथन किया जा रहा है। बीएसपी खेमे से जारी संकेतों के आधार पर माना जा रहा है कि फूलपुर सीट से शिवबरन पासी, मिर्जापुर की मंझवा से दीपू तिवारी और कटेहरी सीट से पवन पाण्डेय के बेटे प्रतीक पाण्डेय चुनावी ताल ठोंकेगे। बाकी 7 सीटों के लिए भी प्रत्याशियों के नाम जल्द तय होने वाले हैं।
बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर ही बीएसपी ने आक्रामक रुख किया अख्तियार
चूंकि यूपी में बीएसपी के दलित वोटबेस में पहले बीजेपी ने सेंधमारी की तो आम चुनाव में दलित वोटरों का बड़ा हिस्सा सपा और कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो गया। अपने वोटबैंक को सहेजने की मुहिम में जुटी मायावती अब एससी-एसटी आरक्षण वर्गीकरण को मुद्दा बनाकर जहां बीजेपी को घेर रही हैं वहीं, अंबेडकर से जुड़े इतिहास का हवाला देकर कांग्रेस पर भी निशाना साध रही हैं। छिटक चुके मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लाने के मकसद से बीएसपी सुप्रीमो धर्मपरिवर्तन कानून और वक्फ कानून पर सवाल उठाकर बीजेपी को कटघरे में खड़ा कर रही हैं। मायावती ने बयान जारी किया कि गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई व पिछड़ेपन सरीखे मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए विध्वंसक बुलडोजर राजनीति सहित जाति व धार्मिक उन्माद एवं विवाद पैदा करने का षडयंत्र जारी है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान पर टिप्पणी करते हुए मायावती ने कहा कि कि एससी-एसटी आरक्षण का श्रेय महात्मा गांधी और पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू को देने की बात में तनिक भी सच्चाई नहीं है। आरक्षण का पूरा श्रेय डॉ भीमराव अंबेडकर को ही जाता है। कांग्रेस के लोगों ने उन्हें संविधान सभा में जाने से रोकने की साजिश की, चुनाव में भी हराने का काम किया। कानून मंत्री पद से भी इस्तीफा देने को विवश किया।
हरियाणा चुनाव के जरिए हासिल अनुभव के सहारे आकाश आनंद यूपी में सक्रिय होंगे
संगठन स्तर पर कील कांटे दुरुस्त करने में जुटी बीएसपी मुखिया मायावती अपने उत्तराधिकारी आकाश आनंद की सियासी जमीन पुख्ता करने की रणनीति पर अमल कर रही हैँ। इसके लिए हरियाणा के विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए अहम मौका है। यहां बीएसपी संस्थापक कांशीराम के दौर से जारी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के साथ रिश्तों को गठबंधन के जरिए फिर से मजबूती दी गई है। यहां बीएसपी की चुनावी तैयारियों की कमान आकाश आनंद को सौंपी गई है। पार्टी रणनीतिकारों को भरोसा है कि यहां मिला अनुभव मायावती के इस उत्तराधिकारी को अधिक परिपक्व बनाएगा और इसका इस्तेमाल यूपी में खोई हुई जमीन वापस पाने में कारगर हो सकेगा।
दरकती सियासी जमीन के चलते बीएसपी की मुश्किलें चहुंओर से बढ़ी हैं
यूपी विधानमंडल के इस बार के मानसून सत्र में बीएसपी के लिए स्थतियां असहज करनी वाली थीं। उच्च सदन से पार्टी का सफाया हो चुका है। उसके इकलौते एमएलसी भीमराव अंबेडकर का कार्यकाल बीती 5 मई को खत्म हो चुका था। जिसके बाद से विधान परिषद में बीएसपी की नुमाईंदगी शून्य हो चुकी है। वहीं, बलिया के रसड़ा से एकमात्र बीएसपी विधायक उमाशंकर स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के चलते सदन में उपस्थित नहीं हो सके लिहाजा विधानसभा की कार्यवाही में भी बीएसपी की सक्रियता शून्य ही रही। रविवार को बीएसपी के सक्रिय नेता और चित्रकूट विधानसभा सीट से प्रत्याशी रहे पुष्पेंद्र चंदेल पार्टी छोड़कर कांग्रेस मे शामिल हो गए तो इसे भी बीएसपी के लिए अच्छा संकेत नहीं माना गया।
मायावती की पार्टी अपने अस्तित्व को लेकर कड़ी चुनौती से जूझ रही है
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी का वोट शेयर 25.9 फीसदी था तब पार्टी को अस्सी सीटों पर जीत मिली थी। साल 2017 में पार्टी का वोट शेयर घटकर 22.4 फीसदी हो गया तब उसके खाते में 19 सीटें ही आ सकीं। पर 2022 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी का वोट शेयर घटकर 12.7 फीसदी रह गया, महज एक सीट ही पार्टी को मिल सकी। हालिया संपन्न हुए आम चुनाव में बीएसपी का वोट शेयर 9.46 फीसदी तक जा पहुंचा था जबकि इससे पहले साल 2019 में पार्टी का वोट शेयर 19.43 फीसदी था और उसके खाते दस लोकसभा सीटें दर्ज हुई थीं। जाहिर है चुनाव दर चुनाव वोट शेयर और सीटों में हुई गिरावट मायावती की पार्टी के लिए मुसीबत का सबब बन चुकी है। इन चुनौतियों का मुकाबला मायावती कैसे करती हैं इसी सवाल के जवाब से बीएसपी के भविष्य की दशा और दिशा तय होगी।