Saturday 21st of September 2024

यूपी शिक्षक भर्ती का मुद्दा: मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की

Reported by: Gyanendra Shukla  |  Edited by: Deepak Kumar  |  August 20th 2024 11:23 AM  |  Updated: August 20th 2024 07:01 PM

यूपी शिक्षक भर्ती का मुद्दा: मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की

ब्यूरोः बीते छह साल से कानूनी दांव पेंचों, अदालती कार्यवाहियों और तीव्र आंदोलनों के उतार चढ़ाव भरे सफर से गुजरती रही है यूपी की एक भर्ती परीक्षा। हालात ये है कि लंबा सफर तय करने के बावजूद इसकी आखिरी मंजिल की दशा और दिशा अभी भी स्पष्ट नहीं है। हम बात कर रहे हैं यूपी के बेसिक शिक्षकों के 69000 पदों पर भर्ती के मुद्दे की। दो बार मेरिट लिस्ट जारी होने के बावजूद ये भर्ती प्रक्रिया नियम के पेंचों-तकनीक की उलझनों और सियासत के मकड़जाल में बेपनाह उलझ चुकी है।  इलाहाबाद हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने दोनो मेरिट लिस्ट को गलत करार देते हुए नए सिरे से मेरिट लिस्ट जारी करने के सरकार को आदेश दिए हैं।

विवाद की नींव पड़ी अखिलेश राज में लिए गए फैसले की वजह से

यूपी की बहुचर्चित 69000 शिक्षक भर्ती विवाद की शुरुआत हुई यूपी में अखिलेश सरकार के सत्ता में आने के बाद। दरअसल, तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने 1.37 लाख शिक्षामित्रों को बीटीसी की ट्रेनिंग दिलाने का फैसला लिया। इसके बाद साल 2015 में इन सभी शिक्षामित्रों को रेगुलर सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया। इनकी तनख्वाह 3500 रुपए से बढ़ाकर 38,878 रुपये कर दी गई। पर यहीं से विवाद के बीज पड़ गए। दरअसल,  टीईटी यानी टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट पास करके नौकरी पाए सहायक अध्यापकों को ये फैसला नहीं भाया। उन्हें अहसास हुआ कि उनसे कम योग्यता वाले लोगों को उनके बराबरी पर बिठाया जा रहा है ये उनके अधिकारों का हनन है। इसे लेकर इनकी ओर से अदालत का दरवाजा खटखटाया गया।

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश सरकार के फैसले से जताई नाइत्तिफाकी

12 सितंबर, 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के अखिलेश सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। इसके बाद ये मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा। 25 जुलाई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाए जाने के फैसले को असंवैधानिक करार दिया। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि 23 अगस्त, 2010 के नोटिफिकेशन के बाद शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जो न्यूनतम योग्यता तय की गई उसके दायरे में शिक्षामित्र नहीं आते हैं। इस वजह स उन्हें सहायक अध्यापक के पद पर रेगुलर नहीं किया जा सकता। शिक्षामित्र इस फैसले से खासे उद्वेलित हुए उन्होंने तीखा विरोध दर्ज कराया। पर इसी बीच सूबे में  सत्ता परिवर्तन हो गया और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार आ गई।

 योगी सरकार ने दो चरणों में शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरू की

 अदालती आदेश के क्रम में योगी सरकार ने शिक्षकों के खाली पदों को भरने की कवायद शुरू की। सरकार ने तय किया कि सभी पदों को इकट्ठे भरने के बजाए दो चरण में भर्ती की प्रक्रिया के लिए विज्ञापन निकाले जाएं। पहले चरण में जनवरी, 2018 में 68,500 शिक्षकों की भर्ती और दूसरे चरण में 5 दिसंबर, 2018 को 69000 शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन निकला। पहले चरण में 68500 पदों की भर्ती प्रक्रिया पर भी विवाद के ग्रहण लगे। इसकी सीबीआई जांच भी हुई। पर इस चरण में उत्तीर्ण हुए अभ्यर्थियों की नियुक्ति हो गई।

 दूसरे चरण में 69000 शिक्षकों की भर्ती की कवायद शुरू हुई

 शिक्षकों को भर्ती करने की योजना के दूसरे चरण के तहत 5 जनवरी, 2019 को परीक्षा आयोजित की गई। जिसमें 4.10 लाख अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया। 6 जनवरी को निर्देश जारी किए गए कि आरक्षित वर्ग के लिए न्यूनतम 60 फीसदी और अनारक्षित वर्ग में न्यूनतम 65 फीसदी अंक लाने अनिवार्य होंगे। इन्हीं मापदंडों के आधार पर 1 जून 2020 को कट ऑफ लिस्ट जारी की गई। तय किए गए न्यूनतम अंकों के मानक पूरा करने वाले कुल 1.47 लाख अभ्यर्थियों की कट ऑफ लिस्ट जारी हुई। इसमें आरक्षित वर्ग के 1.10 लाख अभ्यर्थी शामिल थे। कुल 67, 867 चयनित अभ्यर्थियों की लिस्ट जारी हुई। चयनित अभ्यर्थियों में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) का मेरिट कट ऑफ 66.73 फीसदी और अनुसूचित जाति का 61.01 फीसदी था। वहीं, सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का कट ऑफ का आंकड़ा 67.11 फीसदी घोषित हुआ।

दूसरे चरण की परीक्षा के कट ऑफ मार्क्स जारी होने के बाद विवाद ने जोर पकड़ा

 शिक्षक भर्ती के दूसरे चरण से संबंधित कट ऑफ लिस्ट के सामने आने के बाद ये सवाल उठने लगे कि इस लिस्ट में नाम शामिल करते वक्त बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का पालन नहीं किया गया है। आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों की दलील थी कि नियमानुसार आरक्षित वर्ग का जो अभ्यर्थी सामान्य श्रेणी के कट ऑफ से अधिक अंक पाता है तो उसे आरक्षित में नहीं गिना जाना चाहिए। पर सामान्य श्रेणी के कट ऑफ से अधिक अंक पाने के बावजूद आरक्षित वर्ग के संबंधित अभ्यर्थी को सामान्य श्रेणी में शामिल करने के बजाए  आरक्षित वर्ग में शुमार कर दिया गया। इन अभ्यर्थियों का दावा था कि आरक्षित वर्ग के 19,000 पदों पर घपलेबाजी की गई। ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए जबकि उन्हें महज 3.86 फीसदी और अनुसूचित वर्ग को 21 फीसदी के बजाए 16.2 फीसदी आरक्षण का लाभ ही मिल सका। 

सरकारी तर्क से नाइत्तिफाकी जताते हुए आरक्षित वर्ग के  अभ्यर्थियों ने अपील दायर की

आरक्षण संबंधी विसंगतियों को लेकर उठाई गई आपत्तियों पर शिक्षा महकमे की ओर से सफाई दी गई कि सहायक अध्यापकों की लिखित परीक्षा एक अर्हता भर्ती परीक्षा थी। इसमें पहले ही आयु सीमा से लेकर न्यूनतम कट ऑफ में यथोचित छूट प्रदान की गई है। ऐसे में आरक्षित अभ्यर्थी दोहरा लाभ नहीं ले सकते हैं। हालांकि सरकारी दलीलों को खारिज करते हुए आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने आंदोलन की राह चुन ली। धरना-प्रदर्शन हुआ, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और अदालत में भी अपील दायर की गई। 29 अप्रैल, 2021 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग ने इस मामले में की गई अपील की सुनवाई के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसमें भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों की अनदेखी की बात कही गई। 

सरकार ने आंकड़ों के जरिए आरक्षण नियमों के पालन किए जाने का दावा किया 

पिछड़ा वर्ग आयोग की जांच और अदालती कार्यवाहियों के बीच सीएम योगी ने इस मामले का संज्ञान लेकर प्रकरण की जांच राजस्व परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष मुकुल सिंघल से करवाई। इसके बाद 5 जून 2022 को सरकार ने  6800 अभ्यर्थियों की एक अतिरिक्त लिस्ट जारी कर दी। शिक्षा महकमे का दावा था कि इस भर्ती प्रक्रिया में 34,579 पद अनारक्षित श्रेणी के थे। 12,630 ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थी उच्च अंक पाने की वजह से सामान्य श्रेणी में स्थान पा गए। जबकि 18,598 अभ्यर्थी ओबीसी कोटे के तहत शामिल किए गए। इस लिहाज से 45 फीसदी पदों पर ओबीसी अभ्यर्थियों को नियुक्ति मिली । जबकि 17,260 अनुसूचित जाति के अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए और 1354 अनुसूचित जनजाति वर्ग के अभ्यर्थी चयनित हुए।

आरक्षण विसंगति के आरोप में मामला फिर अदालत की चौखट पर पहुंचा 

सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों को लेकर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी सहमत नहीं हुए। इन अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। इनकी याचिका में कहा गया कि ये पूरा  प्रकरण 19000 पदों पर गड़बड़ी का है, 6800 का नहीं। सरकार अगर आरक्षण नियम का पालन करती तो आरक्षित वर्ग के भर्ती होने वाले अभ्यर्थियों की तादाद और अधिक होती। इस याचिका की सुनवाई करते हुए 13 मार्च 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाया की 6800 की लिस्ट रद्द की जाती है, जिसके बाद 13000 के करीब कुछ अभ्यर्थी और बचते हैं जिनके साथ न्याय हो। हालांकि इस बेंच ने 6800 अभ्यर्थियों की दूसरी मेरिट लिस्ट पर रोक तो लगा दी पर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को अधिक अंक पर सामान्य श्रेणी में शामिल किए जाने की दलील खारिज कर दी। बेंच ने कहा कि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की इस परीक्षा में ओवरलैपिंग नहीं होनी चाहिए। यानी आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अगर अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी के बराबर अंक प्राप्त करता है तो भी वह अनारक्षित वर्ग की श्रेणी में ना जाकर वो अपने आरक्षित वर्ग की श्रेणी में ही रहेगा।

सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ डबल बेंच में अपील की गई

हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ प्रभावित अभ्यर्थियों ने 17 अप्रैल 2023 को हाईकोर्ट की डबल बेंच में अपील दायर की। 19 मार्च 2024 को जस्टिस अताउर्रहमान मसूदी और जस्टिस बृजराज सिंह ने इस मामले की सुनवाई करते हुए फैसले को रिजर्व कर लिया था। जिसका लिखित फैसला 16 अगस्त 2024 को सामने आया। अदालती फैसले में स्पष्ट कहा गया कि बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण अधिनियम 1994 के मुताबिक आरक्षण नीति का पालन करते हुए नई चयन सूची बनाई जाए। वहीं जो अध्यापक इस कार्यवाही से प्रभावित होंगे उन्हें सत्र लाभ दिया जाए.

 डबल बेंच के फैसले के बाद से ही इस मुद्दे पर सियासी घमासान तेज हो गया

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि यह फैसला पांच वर्षों से सर्दी, गर्मी, बरसात में सड़कों पर संघर्ष कर रहे युवाओं की जीत है। उन्होंने आरोप लगाया कि आरक्षण छीनने की बीजेपी की जिद ने सैकड़ों निर्दोष अभ्यर्थियों का भविष्य अंधकार में धकेल दिया है। जिनको नई लिस्ट के जरिए नौकरी मिलेगी और जिनका नाम अब चयनित सूची से कट सकता है, दोनों की ही गुनहगार सिर्फ बीजेपी है। अखिलेश यादव और मायावती ने भी इस मुद्दे पर योगी सरकार को घेरा है। तो वहीं, एनडीए की सहयोगी दल की अनुप्रिया पटेल ने इस फैसले का स्वागत किया है वहीं, योगी सरकार के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी अदालती फैसले के पक्ष में मुखर हुए हैं।

योगी सरकार ने इस मामले में अपना रुख स्पष्ट कर दिया

सीएम योगी ने रविवार को एक हाईलेवल मीटिंग बुलाई। जिसमें बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री और शिक्षा विभाग के अफसरों के साथ ही महाधिवक्ता और विधिक जानकारों को भी बुलाया गया था। बैठक में तय किया गया कि हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षण और इलाहाबाद की लखनऊ बेंच के निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से दो टूक कहा कि सरकार का स्पष्ट मत है कि संविधान में दी गई आरक्षण की सुविधा का लाभ आरक्षित श्रेणी के सभी पात्र अभ्यर्थियों को मिलना ही चाहिए। साथ ही किसी भी अभ्यर्थी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। जाहिर है इस फैसले के जरिए योगी सरकार ने विपक्षी हमलों की धार कुंद की है।

शिक्षक भर्ती के इस संवेदनशील मुद्दे पर अभी भी भविष्य की राह है कांटो भरी

गौरतलब है कि 2022 के चुनाव में भी इस भर्ती प्रक्रिया और आरक्षण विसंगति को मुद्दा बनाया गया था, तो हालिया संपन्न लोकसभा चुनाव में भी इस मुद्दे के जरिए पिछड़ों की अनदेखी का नैरेटिव तैयार किया गया था। अब शिक्षक भर्ती के ताजातरीन फैसले के बाद फिर से ये मुद्दा तूल पकड़ चुका है। इस मुद्दे पर सरकार का पक्ष सामने आ तो चुका है पर जानकार मानते हैं कि भर्ती की ये प्रक्रिया अभी भी सुगम राहों से जाते नहीं दिख रही है। क्योंकि इस प्रक्रिया को लेकर दो विकल्प ही मौजूद नजर आ रहे हैं पहला तो अदालती आदेश के क्रम में नए सिरे से लिस्ट बनाना। पर यह काम बेहद जटिल है। दूसरा इस मामले में जो भी याचिकाकर्ता हैं उन्हें राहत देकर कोई  बीच का रास्ता निकाला जाए। अब इस पेचीदा मुद्दे की गुत्थियों को सुलझाने के तरीके पर पक्ष विपक्ष और जनता की निगाहें टिकी हुई हैं।

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