ब्यूरो: यूपी विधानमंडल का मानसून सत्र महज चार दिन चला। इसके आखिरी दिन जो घटा उसने सरकार के सामने असहज हालात पैदा कर दिए। एक विधेयक को लेकर हुई बहस में सरकार को विपक्ष के साथ साथ अपने ही खेमे के भी जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा। विधिक जानकार मानते हैं कि ये विधेयक दूरगामी परिणाम ला सकता है, इससे भू माफियाओं को चुनौती मिल सकती है लेकिन चुनावी समीकरणों और माहौल को भांपकर भी सरकार ने किसी विवाद की स्थिति से बचने का विकल्प चुना।
नजूल संपत्ति से संबंधित विधेयक को लेकर हुआ बखेड़ा
जिस विधेयक को लेकर यूपी में इस वक्त सर्वाधिक चर्चा हो रही वह है, उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंधन और उपयोग) विधेयक, 2024। विधानसभा में ध्वनिमत से पारित हुआ ये विधेयक विधान परिषद में फंस गया। विधानसभा में सरकार की ओर से इस विधेयक के पक्ष में कई तर्क दिए गए, लेकिन कुछ बीजेपी विधायक भी इसकी मुखालिफत में उठ खड़े हुए। समाजवादी पार्टी ने तो आर पार के विरोध की चेतावनी दे ही दी थी। बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी विरोध के सुरों का इजहार कर दिया।
समझते हैं इस विवादित विधेयक में जिक्र हुई नजूल संपत्तियों के बारे में
नजूल की जमीन का तात्पर्य होता है ऐसी अचल संपत्तियां (जमीन) जिनका लंबे अरसे से कोई अधिकृत वारिस नहीं होता है। इस श्रेणी की जमीनों पर राज्य सरकार का स्वत: ही स्वामित्व या अधिकार हो जाता है। ये कानून ब्रिटिश हुकूमत के दौर से ही था। तब अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ बगावत का परचम फहराने वालों की जमीनों पर इसी कानून के सहारे ब्रिटिश हुकूमत कब्जा कर लेती थी। देश की आजादी के बाद जिन नजूल संपत्तियों पर संबंधित उत्तराधिकारियों ने दस्तावेजों के साथ दावा किया उन्हें तो सौंप दिया गया लेकिन जिन अचल संपत्तियों के बाबत किसी भी तरह का दावा पेश नहीं हुआ उन्हें नजूल संपत्ति करार दिया गया। इनका स्वामित्व संबंधित राज्य सरकार के पास मान लिया गया। देश के तकरीबन हर सूबे में ऐसी अचल संपत्तियों पर कई लोग दशकों से काबिज हैं, कई जमीनों पर तो मेडिकल कालेज-कोर्ट और पुलिस थाने तक बन चुके हैं।
नजूल संपत्तियों से संबंधित विधेयक में क्या अहम बिंदु हैं
योगी सरकार की मंशा है कि तमाम जिलों में मौजूद नजूल की भूमि का इस्तेमाल विकास संबंधी कार्यों में किया जाए। ऐसी नजूल संपत्तियों को राज्य सरकार के आधीन लाने के मकसद से ही उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंधन और उपयोग) विधेयक, 2024 का खाका तय किया गया। जिसमें प्रावधान किया गया कि नजूल भूमि के पूर्ण स्वामित्व परिवर्तन के संबंध में पहले से कोर्ट या विहित प्राधिकारी के समक्ष लंबित सभी आवेदन अस्वीकृत समझे जाएंगे। जिन नजूल जमीनों को फ्री होल्ड कराने के लिए धनराशि जमा की गई है, उसे भारतीय स्टेट बैंक की ब्याज दर पर वापस कर दिया जाएगा।
इस विधेयक का नजूल संपत्तियों और उनके कब्जेदारों पर पड़ेगा असर
विधेयक के कानून बनने के बाद भविष्य में कोई भी नजूल भूमि फ्रीहोल्ड नहीं की जा सकेगी। वहीं लीज की अवधि वर्ष 2025 से खत्म होने की तारीख के बाद जितने दिन उस पर पट्टाधारक काबिज रहेगा, डीएम को उसका किराया तय करके वसूलने का अधिकार होगा। नजूल भूमि पर यदि कोई निर्माण है तो उसके मुआवजे भी व्यवस्था की गई है। शर्तों के उल्लंघन पर संबंधित जिले के डीएम की सिफारिश पर पट्टा अवधि और उसका क्षेत्रफल कम किए जाने या निरस्त किए जाने का प्रावधान किया गया। अंतिम फैसला होने से पहले पट्टाधारक को भी पक्ष रखने का मौका देने की व्यवस्था की गई है। डीएम के फैसले के खिलाफ पट्टाधारक 30 दिन के भीतर सरकार में अपील भी कर सकेगा। विधानसभा में विधेयक पारित कराते समय संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा था कि किसी गरीब को उजाड़ा नहीं जाएगा। कोर्ट, शैक्षणिक और मेडिकल संस्थान यथावत बने रहेंगे। लेकिन आगे से नजूल जमीनों का इस्तेमाल अब विकास कार्यों के लिए ही किया जाएगा। पर विपक्षी दल इस दलील से मुतमईन नहीं हुए। सपा विधायकों ने तो वेल में आकर नजूल बिल को जनविरोधी बताते हुए जमकर नारेबाजी की थी।
बीजेपी खेमे के दो विधायकों ने दर्ज करायी अपनी आपत्तियां
इस विधेयक को लेकर विपक्ष ने तो विरोध कर ही दिया था साथ ही बीजेपी के खुद के खेमे के विधायक भी बिफर उठे थे। बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि पीएम मोदी लोगों को घर दे रहे हैं, क्या आप तोड़ेंगे? उन्होंने फ्रीहोल्ड का पैसा जमा करने वालों की बात सदन में रखी थी। इसपर भी सरकार की तरफ से भरोसा दिया गया कि फ्रीहोल्ड के लिए जिन्होंने रकम जमा की है, उसे बैंक की ब्याज दर के मुताबिक वापस किया जाएगा। पूर्व मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह का सुझाव था कि रिन्यू का विकल्प खुला रखा जाए। हालांकि वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन को आश्वस्त किया था कि जो नियमों के तहत नजूल जमीनों पर रह रहा होगा उसकी लीज रिन्यू कर दी जाएगी।
बीजेपी के सहयोगी व समर्थक दलों ने भी तीखे किए सुर
अमूमन योगी सरकार के समर्थक माने जाने वाले विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया भी विधेयक के विरोध में उठ खड़े हुए। उन्होंने कहा, 'वो बीजेपी के सिद्धार्थनाथ सिंह और हर्षवर्धन वाजपेयी से सहमत हैं. इस विधेयक के गंभीर परिणाम होंगे. इलाहाबाद हाईकोर्ट भी नजूल की जमीन पर है, तो क्या उसे भी खाली करा लिया जाएगा'। वहीं, केंद्रीय मंत्री और एनडीए की सहयोगी अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल ने नजूल संपत्ति विधेयक को गैर जरूरी और जन भावना के खिलाफ करार देते हुए इसे बिना व्यापक विचार विमर्श के जल्दबाजी में लाया गया बताया। उन्होंने इसे तत्काल वापस लेकर उन अधिकारियों को दंडित करने की बात कही जिन्होंने इस विधेयक को लेकर सरकार को गुमराह किया।
विवादित विधेयक को लेकर क्या हुआ था यूपी के विधान परिषद में
उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक विपक्ष के साथ ही अपने खेमे से भी उठ रहे विरोध के तीखे सुरों के बाद ही राज्य सरकार ने इस विधेयक को रोकने का फैसला ले लिया था। विधानसभा से पारित नजूल संपत्ति विधेयक को उच्च सदन में जब डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य टेबल करने का प्रस्ताव करने जा रहे थे तो बीच में ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और एमएलसी भूपेंद्र चौधरी खड़े हुए और विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की बात कही। इस पर सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने उन्हें टोका कि पहले विधेयक टेबल तो हो जाए। बाद में ध्वनिमत से इस विधेयक को प्रवर समिति को सौंप दिया गया। तय हुआ कि प्रवर समिति दो महीने में रिपोर्ट देगी और समिति के सदस्यों के नाम बाद में तय कर दिए जाएंगे।
प्रवर समिति में विधेयक को भेजे जाने के ऐलान के बाद विपक्ष हुआ हमलावर
दो महीने तक के लिए विधेयक के टल जाने के बाद विपक्ष और खासतौर से समाजवादी पार्टी को हमले का मौका मिल गया। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि नजूल की जमीन पर सबसे ज्यादा कब्जा बीजेपी के नेताओं की है इसलिए सरकार पहले अपने लोगों से बिल का विरोध कराती है फिर प्रवर समिति में भेजती है। सरकार की मंशा ही नही है कि नजूल की जमीन को बीजेपी नेताओं से खाली कराया जाए। कांग्रेस ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि जब तक सरकार बिल को वापस नही लेती कांग्रेस का विरोध जारी रहेगा।
विधेयक का चहुँ तरफा विरोध होने की अहम वजहें
नजूल संपत्ति विधेयक से जुड़ी कवायद के विरोध से ये संदेश देने की कोशिश की गई कि ये विधेयक कानून बनेगा तो किसी व्यक्ति या संस्था को नजूल की संपत्तियों के स्वामित्व से हाथ धोना पड़ सकता है। हालांकि वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेन्द्र नाथ भट्ट इन आपत्तियों को खारिज करते हुए कहते हैं कि इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि नजूल की जमीनों पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे हैं, उसे लेकर कई बार हिंसा होती रही है, कानून व्यवस्था को खतरा हुआ है। लिटिगेशन की भी भरमार है। भट्ट कहते हैं कि योगी सरकार जो कानून बनाना चाहती है उसकी जद में भू माफिया जरूर आ जाएंगे। कई मामलों में जिन लीज शर्तों पर नजूल संपत्तियां दी गईं उनका खुला उल्लंघन किया गया, ऐसे लोगों का नए कानून से डरना स्वाभाविक है। लखनऊ-कानपुर-मेरठ में ऐसी नजूल संपत्तियां बड़ी तादाद में हैं, प्रयागराज में तो ऐसी संपत्तियों की भरमार है इसलिए विरोध के सुर यहीं से अधिक हैं। पर अगर नजूल संपत्तियों का प्रबंधन सही से हुआ तो ये सरकार के राजस्व का अच्छा स्रोत बन सकता है, कई आवासीय योजनाएं साकार हो सकती हैं।
बहरहाल, चूंकि दस विधानसभा सीटो पर उपचुनाव होने हैं, हाल ही में संपन्न हुए आम चुनाव में प्रयागराज और आसपास के इलाकों में बीजेपी को भारी नुकसान सहना पड़ा, ऐसे में भले ही नूजल संपत्ति संंबंधी विधेयक दूरगामी परिणाम लाने वाला हो पर तात्कालिक तौर से बखेड़ा खड़ा कर सकता है। हाल फिलहाल ऐसे हालातों से बीजेपी सरकार और संगठन बचना चाहते हैं इसलिए मध्यमार्गी राह पर चलकर विधेयक को प्रवर समिति को देकर फिलहाल मामले को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया गया है।