ब्यूरो, Gyanendra Shukla, Editor, UP: चार दशक पूर्व अस्तित्व में आई बहुजन समाज पार्टी अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। हालिया संपन्न आम चुनाव में मायावती की पार्टी न सिर्फ शून्य पर जा टिकी बल्कि उसका वोटशेयर राष्ट्रीय स्तर पर जबरदस्त घट गया। देश भर में पार्टी का वोट शेयर 2019 के आम चुनाव के 3.62 फीसदी से लुढ़ककर 2.04 फीसदी तक जा पहुंचा। अब अपने भतीजे आकाश आनंद की पार्टी में री-लांचिग कराने के बाद अब पार्टी सुप्रीमो मायावती बीएसपी को देश भर में दोबारा खड़ी करने की मुहिम में जुटी हैं। इसके तहत बीएसपी ने यूपी की दस सीटों पर होने वाले उपचुनाव के साथ ही दूसरे राज्यों के उपचुनावों में भी हिस्सा लेने की रणनीति के साथ ही प्रदेश इकाईयों को नए सिरे से सक्रिय करने का फैसला लिया है।
हरियाणा में सख्त एक्शन, नए सिरे से पार्टी संगठन रचने की तैयारी
चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद बीएसपी में सख्ती का चाबुक चलना शुरू हो गया था। जिसके तहत बीएसपी के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष राजवीर सोरखी को पद से बर्खास्त करके धर्मपाल तिगरा की नियुक्ति की गई। पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुमेर जांगड़ा को भी उनके पद से हटा दिया गया। उन्हें सिर्फ एक विधानसभा जौलाना का जिम्मा दिया गया है। आपको बता दें कि साल 1998 में इनेलो के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ी बीएसपी के प्रत्याशी के तौर पर सांसद बनने वाले अमन नागरा पार्टी के पहले सांसद बने थे, साथ ही आखिरी सांसद भी हैं क्योंकि तब से लेकर अब तक पार्टी कोई संसदीय सीट न जीत सकी। साल 2018 में बीएसपी ने इनेलो के साथ गठजोड़ किया, पर टूट गया। साल 2019 में राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के साथ हुआ गठबंधन भी कायम न रह सका। फिलहाल मायावती की तरफ से बीएसपी के केंद्रीय कोऑर्डिनेटर एवं हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ के प्रदेश इंचार्ज रणधीर सिंह बेनीवाल को हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाबत पुख्ता तैयारी के निर्देश दिए गए हैं।
पंजाब मे पैठ बनाने के लिए बीएसपी कमर कसे हुए है
बीएसपी संस्थापक कांशीराम पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गांव के निवासी थे। अपने शुरूआती दौर में बीएसपी ने अनुसूचित जाति की बहुलता की वजह से पंजाब के दोआबा क्षेत्र पर फोकस किया था। पार्टी ने 1989 के आम चुनाव में फिल्लौर आरक्षित सीट जीती थी। साल 1992 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को दोआबा क्षेत्र से छह सीटें जीतने में कामयाबी मिली थी। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में फिल्लौर, होशियारपुर और फिरोजपुर की सीटें बीएसपी के खाते में दर्ज हुई थीं। होशियारपुर से कांशीराम चुनाव जीते थे। हालांकि इसके बाद पंजाब में बीएसपी की पकड़ कमजोर होने लगी। साल 2022 में बीएसपी ने शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन किया। पर महज नवांशहर की सीट उसे हासिल हो सकी जहां से नछत्तर पाल सिंह चुनाव जीते थे। तब बीएसपी का वोट शेयर 2017 के 1.5 फीसदी से बढ़कर 1.83 फीसदी तक हो गया था। हालांकि आम चुनाव में तो पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा पर अब फिर से बीएसपी पंजाब में अपनी सक्रियता बढ़ाने में जुट रही है। आम आदमी पार्टी के टिकट से चुनाव जीते शीतल अंगुराल के इस्तीफा देने की वजह से रिक्त हुई जालंधर वेस्ट सीट पर बीएसपी ने बिंदर लाखा को चुनाव मैदान में उतारा है। इनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए मायावती ने पार्टी की पंजाब इकाई को खास निर्देश दिए हैं।
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में पैठ बनाने की कवायद में जुटी बीएसपी
उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से बीएसपी दलित-मुस्लिम फार्मूले के जरिए चुनावी सफलता हासिल करने के लिए लगातार सक्रिय रही है। साल 2017 में 6.98 फीसदी वोट शेयर हासिल करने वाली बीएसपी का वोट शेयर 2022 के विधानसभा चुनाव में घटकर 4.82 फीसदी हो गया था। पर उसे हरिद्वार की दो विधानसभा सीटों पर कामयाबी मिल गई। मंगलौर से सरबत अंसारी और लक्सर से मोहम्मद शहजाद को जीत मिली थी। बीते साल सरबत अंसारी के निधन से रिक्त हुई मंगलौर सीट पर हो रहे उपचुनाव में बीएसपी ने उनके बेटे उबेदुर रहमान उर्फ मोंटी को प्रत्याशी बनाया है, पार्टी की ओर से यहां चुनाव प्रचार के लिए मायावती और आकाश आनंद सहित 13 स्टार प्रचारकों की सूची जारी हो चुकी है।
महाराष्ट्र में संगठन स्तर पर बीएसपी की जबरदस्त ओवरहालिंग
बीते दिनों लखनऊ में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद बीएसपी की महाराष्ट्र की प्रदेश कार्यकारिणी बर्खास्त कर दी गई। दरअसल, महाराष्ट्र के बीएसपी प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट परमेश्वर गोणारे ने पार्टी आला कमान के सामने प्रदेश कार्यकारिणी में मनमुटाव और खेमेबाजी की शिकायत की थी। नागपुर में पार्टी भितरघात और मारपीट व धमकी देने के मामले सामने आए थे। जिसे लेकर पदाधिकारियों ने एक-दूसरे के खिलाफ पुलिस में भी शिकायत की थी। अभी महाराष्ट्र प्रदेश के प्रभारी के रूप में राज्यसभा सांसद रामजी गौतम के पास संगठन की जिम्मेदारी है। हालांकि बीएसपी मुखिया अब खुद यहां संगठन की गतिविधियों की मॉनिटरिंग करेंगी। पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यहां कील कांटे दुरुस्त करने की तैयारी में है।
मध्यप्रदेश में वोटशेयर में बढ़त से बीएसपी खेमे में जगी आस
मध्यप्रदेश में भले ही सत्तारूढ़ बीजेपी ने सभी 29 सीटें जीत ली हों बीएसपी व कांग्रेस का खाता तक न खुल सका हो पर चुनावी नतीजों के आंकड़े तस्दीक करते हैं कि बीएसपी की मौजूदगी ने यहां कई सीटों पर असर डाला। बीएसपी प्रत्याशियों को मिले वोट ने सतना, मुरैना, खजुराहो और रीवा सीटों पर कांग्रेस की जीत की राह रोक दी। बीएसपी का वोट शेयर साल 2019 के 2.4 फीसदी से बढ़कर 3.3 फीसदी हो गया। 21 सीटों पर बीएसपी प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे। यहां वोटशेयर में इजाफे ने भविष्य को लेकर बीएसपी रणनीतिकारों की उम्मीदों को भी जगाया है।
छत्तीसगढ़ की सियासत में भी अपना असर कायम करने की रणनीति
कभी कांशीराम ने छत्तीसगढ़ में 'एक वोट-एक नोट-एक मुठ्ठी चावल' अभियान चलाकर दलित व वंचित तबकों में अपनी पैठ बनाई थी। एक वक्त में यहां बीएसपी का वोट शेयर सात फीसदी तक जा पहुंचा था पर घटकर दो फीसदी से कम हो गया। अब फिर से पार्टी स्व कांशीराम के नाम और उनके अभियान सरीखे कार्यक्रमों के जरिए इस राज्य में प्रसार करने की रणनीति पर अमल कर रही है। छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज के आस्था के केन्द्रों पर हुई तोड़फोड़ के मुद्दे पर मायावती ने मुखरता के साथ विरोध दर्ज किया है। पार्टी की राज्य इकाई इसे बीएसपी की सक्रियता के लिहाज से बड़ा कदम मान रही है।
उत्तर से लेकर दक्षिण तक सक्रियता बढ़ाएगी मायावती की पार्टी
बीएसपी की ओर से पूर्व राज्यसभा सदस्य डा. अशोक सिद्धार्थ को दक्षिण के सभी राज्यों में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार राज्य का प्रभारी रामजी गौतम को बनाया गया है। जबकि जम्मू-कश्मीर का प्रभार राजाराम के पास है। वहीं, झारखंड में संगठन की मजबूती की जिम्मेदारी गया चरण दिनकर को सौंपी गई है।
अब यूपी की दस विधानसभा सीटों सहित अन्य राज्यों में हो रहे विधानसभा उपचुनाव में मजबूती के साथ चुनाव लड़ने के लिए कमर कस चुकी है बीएसपी। संगठन को नए सिरे से तैयार करके और नई व्यूह रचना करके मायावती की पार्टी संदेश देना चाहती है कि बीएसपी कमजोर भले हुई हो पर उसका असर खत्म नहीं हुआ है। बीएसपी का हाथी एकबारगी फिर से अपनी उपस्थिति का अहसास करा सकेगा या नहीं ये तय भले न हो पर सियासत में आस लगाना और उम्मीदों को जगाए रखना भी बेमानी नहीं होता।