ब्यूरोः उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानसून सत्र की कार्यवाही के दौरान मंगलवार को 'लव जिहाद रोकथाम' का बिल पास कर दिया गया है। इस संशोधन में दोषियों को दंडित करने के प्रावधानों को कठोर बनाया गया है। पहले से परिभाषित अपराधों की सजा बढ़ा दी गई है, अब दोषी को अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी।
संशोधन में क्या हैं प्रावधान?
संशोधित प्रावधानों के तहत अगर कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन के इरादे से किसी महिला, नाबालिग या किसी को धमकाता है, हमला करता है, शादी करता है या शादी का वादा करता है या इसके लिए साजिश रचता है या तस्करी करता है तो उसके अपराध को सबसे गंभीर श्रेणी में रखा जाएगा। संशोधित विधेयक में ऐसे मामलों में 20 साल की कैद या आजीवन कारावास का प्रावधान है। पहले इसके तहत अधिकतम 10 साल की सजा और 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान था। संशोधित प्रावधान के तहत अब कोई भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन के मामलों में एफआईआर दर्ज करा सकता है।
पहले मामले में सूचना या शिकायत देने के लिए पीड़ित, माता-पिता, भाई-बहन की मौजूदगी जरूरी थी, लेकिन अब इसका दायरा बढ़ा दिया गया है। अब कोई भी व्यक्ति लिखित में पुलिस को इसकी सूचना दे सकता है। प्रस्ताव दिया गया है कि ऐसे मामलों की सुनवाई सत्र न्यायालय से नीचे की कोई अदालत नहीं करेगी और इसके साथ ही सरकारी वकील को मौका दिए बिना जमानत याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा। साथ ही इसमें सभी अपराधों को गैर जमानती बनाया गया है।
इसके लिए नवंबर 2020 में अध्यादेश जारी किया गया था और बाद में उत्तर प्रदेश विधानमंडल के दोनों सदनों से विधेयक पारित होने के बाद उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 लागू हो गया। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सोमवार को सदन में विधेयक पेश किया।
हालांकि, विपक्ष ने विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम में संशोधन करने वाले विधेयक को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की और आरोप लगाया कि वह सांप्रदायिक राजनीति के जरिए लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने संसद के बाहर संवाददाताओं से जब विधेयक के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उनके पास और क्या है, वे कुछ नया नहीं कर रहे हैं।' उन्होंने आरोप लगाया कि वे सांप्रदायिक राजनीति के जरिए लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं।