ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor: UP: यूपी में मायावती के शासनकाल में दो सीएमओ डॉ विनोद आर्य और डॉ बी पी सिंह की हत्या की वारदात की जांच कर रही थी सीबीआई। इन मामलों की तफ्तीश का एक सिरा स्वास्थ्य महकमे से जुड़ा पाया गया। जांच बढ़ती रही और स्वास्थ्य महकमे में महाघोटाले की परतें खुलने लगीं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन यानि एनआरएचएम के फंड की जमकर बंदरबांट का काला सच उजागर हुआ। दोनों सीएमओ की हत्या के मामलों और घोटाले के आरोप में ही लखनऊ के डिप्टी सीएमओ डॉ. वाईएस सचान को गिरफ्तार किया गया था।
क्या हुआ था जेल में डॉ सचान की संदिग्ध मौत वाले दिन
22 जून, 2011 की सुबह तकरीबन 11 बजे खबर आई कि लखनऊ जिला जेल में बंद डिप्टी सीएमओ डॉ योगेन्द्र सिंह सचान की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। जानकारी मिलते ही शासन स्तर पर हड़कंप मच गया। सूचना मिलते ही तत्कालीन डीजीपी कर्मवीर सिंह और एडीजी जेल वीके गुप्ता प्रशासनिक अफसरों के संग गोसाईगंज स्थित जिला जेल पहुंच गए।
मौका-ए-वारदात पर मिले सबूत दुस्साहसिक साजिश का संकेत दे रहे थे
मौके पर पहुंचे अफसरों को जेल अस्पताल की पहली मंजिल के टॉयलेट में डॉ सचान का शव टायलेट की सीट पर मिला। गले में बेल्ट का फंदा था, जिसका एक सिरा ऊपर बंधा था। शरीर पर आठ से नौ इंच गहरे और लंबे आठ कट के निशान थे। कट के निशान गले, कोहनी, बांह, कलाई और जांघ पर थे। टॉयलेट में चारों तरफ खून फैला था। पास ही आधी ब्लेड पड़ी थी। इलाकाई पुलिस ने पंचनामा भरकर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुआ था ये खुलासा
संदिग्ध मौत की इस घटना के एक दिन बाद 23 जून, 2011 को डॉ सचान के शव का पोस्टमार्टम किया गया। तीन डॉक्टरों के पैनल में शामिल थे- डॉ. मौसमी सिंह, डॉ.शैलेश कुमार श्रीवास्तव और डॉ.सुनील कुमार सिंह। इनकी रिपोर्ट में गहरी चोटों की वजह से अधिक खून बहने और सदमे से मौत की बात कही गई। यानी गले में कसी मिली बेल्ट मौत की वजह पाई गई। शव का पोस्टमार्टम करने वाली डॉ. मौसमी सिंह ने भी कोर्ट में दिए गए बयान में कहा कि डॉ. सचान के शरीर पर धारदार हथियार से आठ से ज्यादा वार किए गए थे, एक लिगेचर मार्क (मरने के बाद की चोट)था। दाढ़ी बनाने वाले ब्लेड से ऐसी चोट नहीं आ सकती। डॉ. सचान की बाईं कलाई और दाहिने हाथ पर गहरा कट था। सामान्य तौर पर कोई भी आत्महत्या करने वाला व्यक्ति खुद पर इतने गहरे वार कर ही नहीं सकता।
खुदकुशी की पुलिसिया थ्योरी से जुड़े सबूतों को सहेजने में बरती गई लापरवाही
भले ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मौके पर मिले सुबूत चीख चीख कर बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहे थे। पर शुरुआती पड़ताल से पहले ही पुलिस इसे खुदकुशी का केस बताकर मामले को रफा दफा करने की कोशिश करती नजर आई। मौके पर पहुंचे पुलिस अफसरों ने एकाएक बाद में दावा किया था कि उन्हें मौके से एक कागज मिला, जिस पर लिखा था, 'मैं बताना चाहता हूं कि मैं निर्दोष हूं, मुझे जेल के अधिकारियों, कर्मचारियों और परिवार के लोगों से कोई समस्या नहीं है'। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि डॉ सचान के सामान से सुसाइड नोट भी बरामद हुआ था, पर आईजी जेल वी के गुप्ता ने इस नोट को अपने कब्जे में लेने के बाद भी सहेज कर नहीं रखा, इसकी सही जानकारी नहीं दी जबकि बाकी के जेल कर्मियों ने भी कई बातों को नहीं बताया और अनियमितता की। इसी नोट को पहले तो हटा दिया गया, बाद में फोटोकॉपी मुहैया कराई गई। जांच एजेंसी ने साक्ष्यों की रक्षा न कर पाने और गंभीर प्रकरण में पूरी जिम्मेदारी से काम न करने का आरोपी ठहराते हुए तत्कालीन आईजी जेल वीके गुप्ता, हेड वार्डर पहींद्र सिंह व बाबू राम दुबे के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संस्तुति भी की थी।
तत्कालीन कैबिनेट सचिव सीबीआई जांच की जरूरत खारिज करते रहे
घटना के चौबीस घंटे बाद प्रेस वार्ता करते हुए यूपी के तत्कालीन कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने 'पहली नजर में आत्म हत्या' बताते हुए इस मामले में सीबीआई जांच की मांग को एक सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि नौ चोटों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि ' लाश के पास एक तेज धार वाला ब्लेड मिला है, डॉ सचान ने मौत से पहले अपनी नसें काटीं, मृत्यु अत्यधिक रक्तस्राव से हुई। उन्होंने ये भी जोड़ा था कि विरोधी दल पार्टी और सरकार को बदनाम करने के लिए बेबुनियाद बयानबाजी कर रहे हैं और मीडिया को उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
दिवंगत डॉक्टर की पत्नी ने किया था सनसनीखेज खुलासा
तब पुलिस और सरकार भले ही डॉ. सचान की मौत को खुदकुशी बताने पर तुली हो पर उनकी पत्नी डॉ मालती सचान इसे सोचीसमझी हत्या की वारदात बता रही थीं। मालती सचान का आरोप था कि दिवंगत डॉ सचान मौत के अगले ही दिन अपने बयान में एनआरएचएम घोटाले की पोल खोलने वाले थे, चूंकि डॉ सचान के बयानों के सामने आने के बाद कुछ सफेदपोशों के चेहरे बेनकाब हो जाते इसलिए उनका मुंह हमेशा के लिए बंद कराने के लिए हत्या की वारदात को अंजाम दिया गया। बहरहाल, मालती सचान की तहरीर के आधार पर घटना के चार दिन बाद 26 जून, 2011 को डॉ सचान की संदिग्ध मौत मामले में मुकदमा दर्ज किया गया।
न्यायिक जांच में भी हत्या की बात सामने आई
इस मामले में सामने आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मीडिया की खबरों के बाद विपक्षी दल भी सक्रिय हुए। सड़कों पर सियासी दलों के कार्यकर्ताओं ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। हालात की संवेदनशीलता भांप कर मायावती सरकार ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए। 11 जुलाई 2011 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट राजेश उपाध्याय की जांच रिपोर्ट में भी डॉ. सचान की मौत को हत्या करार दिया गया। फिर भी पुलिस फिर भी आत्महत्या के बयान पर टिकी रही।
हाईकोर्ट के आदेश पर हुई सीबीआई जांच में मौत को खुदकुशी बताया गया
14 जुलाई, 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जस्टिस प्रदीप कांत और जस्टिस रितुराज की बेंच ने सच्चिदानंद गुप्ता द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए डॉ सचान मौत मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए। इधर हाईकोर्ट के रुख को भांपकर राज्य सरकार ने भी सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी थी। जांच एजेंसी ने इस मामले में तफ्तीश शुरू कर दी। डॉ सचान की मौत के समय जेल में तैनात कर्मचारियों, अफसरों और घटना की सूचना पाकर मौके पर पहुंचे पुलिस व प्रशासनिक अफसरों के बयान दर्ज किए गए। करीब 14 महीने की तहकीकात के बाद सीबीआई ने 27 सितंबर 2012 को इस मौत को आत्महत्या बताते हुए हाई कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी।
पुनर्विवेचना में भी सीबीआई खुदकुशी की थ्योरी पर ही अड़ी रही
दिवंगत डॉ. सचान की पत्नी ने सीबीआई की रिपोर्ट से असहमति जताते हुए इसे सीबीआई की विशेष अदालत में चुनौती देते हुए फिर से जांच और फैसले की मांग की। अदालत ने इस मांग को स्वीकार करते हुए सीबीआई को नए सिरे से मामले की जांच के आदेश दिए। करीब छह साल तक फिर जांच करके सीबीआई ने 9 अगस्त 2017 को मामले की फाइनल रिपोर्ट अदालत में दाखिल की, जिसमें फिर आत्महत्या की ही बात दोहराई। अपनी दलील के पक्ष में जांच एजेंसी ने एक कथित सुसाइड नोट की फोटोकापी पेश की। पर इसे मनगढ़ंत थ्योरी बताते हुए डॉ सचान की पत्नी ने पुरजोर विरोध किया। मालती सचान ने सीबीआई की इस फाइनल रिपोर्ट को प्रोटेस्ट अर्जी के जरिए चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने सीबीआई अदालत के फैसले को पलटा तो मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
मालती सचान की अर्जी की सुनवाई करते हुए 19 नवंबर 2019 को सीबीआई की विशेष अदालत ने जांच एजेंसी की फाइनल रिपोर्ट को खारिज करते हुए अर्जी को परिवाद के रूप में दर्ज कर लिया। 12 जुलाई 2022 को सीबीआई की विशेष अदालत ने डॉ सचान की मौत मामले को गहरी साजिश के तहत हत्या मानकर फैसला सुना दिया। साथ ही मौत की सूचना पाकर मौके पर पहुंचे तत्कालीन डीजीपी कर्मवीर सिंह, एडीजी जेल वीके गुप्ता, आईजी लखनऊ सुभाष चंद्रा, जेलर वीएस मुकुंद, डिप्टी जेलर सुनील कुमार सिंह, मुख्य बंदी रक्षक बाबूराम दुबे और बंदी रक्षक महेन्द्र सिंह को 8 अगस्त 2022 को तलब कर लिया। इस फैसले के खिलाफ अफसर हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने अफसरों को तलब करने पर रोक लगाने के साथ ही सीबीआई के आदेश को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ डॉ. सचान की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।
डॉ सचान संदिग्ध मौत मामले से जुड़े ये दस सवाल आज भी हैं अनुत्तरित
1--डॉ सचान जेल की पहली मंजिल पर सुनसान जगह पर अधबनी इमारत के बाथरूम में कैसे और क्यों गए?
2--अगर पुलिसिया थ्योरी के मुताबिक डॉ सचान ने अपनी नस को काटकर आत्महत्या की थी तो उनके गले में बेल्ट किसने बांधी?
3-- चमड़े की बेल्ट से गले में फंदा लगाकर बाथरूम के रोशनदान की सरिया से लटककर आत्महत्या करना क्या संभव है?
4-- जैसा तत्कालीन कैबिनेट सचिव का बयान था और पीएम रिपोर्ट में दर्ज है कि डॉ सचान ने अपने शरीर में आठ जगह नसें काटी थीं, तो क्या इन गहरे घावों से लहूलुहान कोई शख्स गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर सकता है?
5--सवाल ये भी है कि आखिरकार जेल के लिहाज से प्रतिबंधित सूची में आने वाली बेल्ट और धारदार ब्लेड डॉ सचान तक पहुंचे कैसे?
6--पीएम रिपोर्ट में डॉ. सचान की बाईं कलाई और दाहिने हाथ पर गहरा कट पाया गया। सामान्य तौर पर कोई भी आत्महत्या करने वाला व्यक्ति खुद पर इतने गहरे वार कर ही नहीं सकता, इस तथ्य पर गौर ही नहीं किया गया?
7--पीएम रिपोर्ट करने वाले डॉक्टरों के बयानों के बाबत सीबीआई ने क्यों चुप्पी साधी?
8--कथित सुसाइड नोट की फोटोकॉपी सामने आई, असली नोट कहां गया? क्यों उसे सहेज के नहीं रखा गया?
9---मौत के एक दिन बाद अदालत में डॉक्टर सचान क्या बयान देने वाले थे, कौन-कौन सफेदपोश उनके बयानों से मुश्किलों में फंस सकते थे, क्या इसकी तफ्तीश की गई?
10--जिला जेल के तत्कालीन फार्मासिस्ट संजय सिंह ने अदालत में बयान दिया था कि घटना के बाद मौके पर गए अधिकारियों को उसने अपना सर्जिकल ट्रे दिखाया था, तो उसमें एक हैंडल विथ नाइफ था। अधिकारियों ने उसे तो बाहर निकाल दिया, लेकिन सर्जिकल नाइफ उसे नहीं वापस नहीं मिला। आखिर इस मामले में सर्जिकल नाइफ की क्या भूमिका थी, उसे किसने और क्यों निकला, इस संबंध में कोई ठोस जवाब क्यों नहीं मिल सके?