UP: कई कद्दावर सियासी दिग्गज रह चुके हैं यूपी में नेता प्रतिपक्ष, कभी बीएसपी के खेवनहार रहे दिग्गजों का नाम चर्चा में
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा देने के बाद जो मुद्दा सर्वाधिक सुर्खियों में है वह है यूपी में नेता प्रतिपक्ष के पद पर तैनाती का। इस पद पर समाजवादी पार्टी के किसी कद्दावर चेहरे को मौका मिलना तय है पर ये चेहरा कौन होगा इसे लेकर अटकलों के दौर जारी हैं। शिवपाल सिंह यादव, इंद्रजीत सरोज और रामअचल राजभर के नाम सुर्खियों में हैं। संसद में अखिलेश यादव की सक्रियता के दौरान यूपी में सदन में पार्टी के मुद्दों को जोरदार तरीके से रखने और सूबे में कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए रखने वाले चेहरे की अहमियत होगी। इसी वजह से तमाम पहलू और समीकरणों के मद्देनजर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष को लेकर सपाई खेमे में मंथन जारी है।
कई कद्दावर सियासी दिग्गज रह चुके हैं यूपी में नेता प्रतिपक्ष
यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर कई सियासी पुरोधा आसीन रह चुके हैं। अब तक छह पूर्व मुख्यमंत्री विधानसभा में विपक्ष के नेता बन चुके हैं। इनमें चंद्रभानु गुप्ता, चौधरी चरण सिंह, एनडी तिवारी, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह यादव, और अखिलेश यादव शामिल रहे हैं। इनके अलावा चौधरी खलीकुज्जमा, त्रिलोकी सिंह, राजनारायण, कमलापति त्रिपाठी, आजम खान, लालजी टंडन, रेवती रमण सिंह, गयाचरण दिनकर, शिवपाल सिंह यादव, स्वामी प्रसाद मौर्य और रामगोविंद चौधरी सरीखे दिग्गज नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं।
बतौर नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने निभाई प्रभावी भूमिका
गौरतलब है कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में करहल सीट से केंद्रीय मंत्री डॉ एसपी सिंह बघेल को हराकर पहली बार विधायक बने थे अखिलेश यादव। तब उन्होंने आजमगढ़ संसदीय सीट से इस्तीफा देकर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने का फैसला लिया था। तब समाजवादी पार्टी के विधायकों की बैठक में मिल्कीपुर विधायक अवधेश प्रसाद ने नेता प्रतिपक्ष के लिए अखिलेश यादव के नाम का प्रस्ताव रखा जिसका समर्थन निजामाबाद के विधायक आलम बदी ने किया था। बतौर नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने जनता से जुड़े मुद्दे सदन के भीतर प्रभावी तरीके से उठाए। कई मौकों पर उनकी सत्तापक्ष से गरमागरम बहस भी हुई। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से तो निजी हमलों तक विवाद गरमाया, सपा मुखिया की सबसे चर्चित नोंकझोंक हुई सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ प्रयागराज में अधिवक्ता उमेश पाल की हत्या को लेकर। जिस मामले में सीएम योगी ने माफिया को मिट्टी में मिला देने का चर्चित बयान सदन में दिया था।
ये कद्दावर नाम कई वजहों से नेता प्रतिपक्ष के दावेदारी से दूर हो चुके हैं
रामपुर में दर्ज मामलों में सजायाफ्ता हो चुके सपा के फायरब्रांड नेता रहे आजम खान विधानसभा से अयोग्य घोषित हो चुके हैं। योगी 1.0 कार्यकाल में 2017-2022 तक विपक्ष के नेता के तौर पर अपना प्रभाव कायम करने वाले रामगोविंद चौधरी साल 2022 का विधानसभा चुनाव ही हार गए। छह बार की विधायकी का अनुभव रखने वाले कटेहरी से विधायक लालजी वर्मा अब अंबेडकरनगर सीट से सांसद बन चुके हैं। वहीं, मिल्कीपुर विधायक रहे अवधेश प्रसाद बहुचर्चित फैजाबाद सीट जीतकर सांसद बन चुके हैं। लिहाजा ये दिग्गज नेता अब विधानसभा से दूर जा चुके हैं।
विपक्ष के नेता के तौर पर शिवपाल सिंह यादव निभा चुके हैं भूमिका
छह बार के विधायक रहे शिवपाल सिंह यादव मायावती के शासनकाल में साल 2009 से 2012 तक नेता प्रतिपक्ष रहे थे। तब समाजवादी पार्टी को खासे प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन सदन से सड़क तक संघर्ष करने में शिवपाल सिंह यादव ने अपनी दमदार भूमिका निभाई थी। उन्होंने खुद पुलिसिया उत्पीड़न सहा पर पार्टी और जनता से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से सदन में उठाया। कई मौकों पर उनके कुशल वक्ता होने पर सवाल जरूर उठे हैं पर संगठन को जोड़ने-कार्यकर्ताओं से संवाद करने और पार्टी के मुद्दों को धारदार तेवरों के साथ उठाने में शिवपाल सिंह यादव का सपा में कोई सानी नहीं है। तमाम काबिलियत के बावजूद इन्हें मौका दिए जाने पर अखिलेश यादव पर परिवारवाद की तोहमत लग सकती है। यही फैक्टर शिवपाल सिंह यादव के लिए निगेटिव हो सकता है।
कभी बीएसपी के खेवनहार रहे दिग्गजों का नाम चर्चा में
कौशांबी की मंझनपुर सीट से विधायक इंद्रजीत सरोज यूपी में बीएसपी शासन के दौरान समाज कल्याण मंत्री हुआ करते थे। बाद में सपा में शामिल हो गए। इनके बाटे पुष्पेन्द्र सरोज ने कौशांबी संसदीय सीट बीजेपी के विनोद सरोज से छीन ली है। दलित बिरादरी में इनकी पैठ मजबूत रही है। तो पिछड़ी जाति से संबंधित रामअचल राजभर अंबेडकरनगर की अकबरपुर सीट से विधायक हैं। छह बार विधायक बन चुके हैं। मायावती के शासनकाल में यूपी के परिवहन मंत्री हुआ करते थे। गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव एससी समीकरण के तहत ये दोनों चेहरे एकदम फिट बैठते हैं।
'पीडीए' फार्मूले के तहत पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक चेहरे पर हो सकता है दांव
हालिया संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पीडीए यानि पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक की रणनीति को आजमाया और बड़ी सफलता हासिल की। पार्टी पांच सीटों से 37 सीटों को जीतने में कामयाब हुई। अब सपा मिशन-2027 यांनी आगामी विधानसभा चुनाव पर फोकस कर रही है ऐसे में 'पीडीए' फार्मूले को मजबूत करने पर जोर है। इसी वजह से रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज, कमाल फारूकी, महबूब अली सरीखे नामों का भी जिक्र भी हो रहा है। बहरहाल, ‘पीडीए’ की धार तेज करने के लिए पार्टी ओबीसी व दलित चेहरों पर मंथन कर रही है। जल्द ही एक प्रभावशाली चेहरा यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सामने आने जा रहा है।